राम प्रसाद की तेरहवीं मूवी रिव्यू : इस फिल्म में है ट्रैजेडी के साथ कॉमेडी का तड़का
By Ek Baat Bata | Jan 02, 2021
जहाँ बीता साल 2020 बॉलीवुड के लिए कुछ खास नहीं रहा, वहीं नए साल 2021 से सिनेमा लवर्स को बहुत उम्मीदें हैं। इस साल बॉलीवुड की बहुत सी बड़ी फिल्में सिनेमाघरों में रिलीज की जानी हैं,जिनसे दर्शकों को फुल एंटरटेनमेंट की उम्मीद है। नए साल की शुरुआत सीमा पाहवा निर्देशित ड्रामा-कॉमिडी फिल्म 'राम प्रसाद की तेरहवीं' से हुई है। अभिनय के क्षेत्र में खुद को उम्दा अभिनेत्री के तौर पर साबित कर चुकी सीमा पाहवा की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। यह फिल्म नए साल के मौके पर यानी 1 जनवरी 2021 को सिनेमाघरों में रिलीज की गई है। अगर आप भी यह फिल्म देखने का प्लान बना रहे हैं तो ये रिव्यू जरूर पढ़ लें -
यह फिल्म उत्तर प्रदेश के भार्गव परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म की शुरुआत में दिखाया जाता है कि भार्गव परिवार के मुखिया राम प्रसाद भार्गव की मौत हो जाती है। राम प्रसाद की मौत के बाद उनके 6 बेटों समेत घर के कुल 20 सदस्य अलग-अलग शहरों से अपने पिता की मौत का शोक मनाने घर में जुटते हैं। हालांकि, पिता की मौत के दुख से ज़्यादा, सभी को शिकायत है कि पिता ने उनके लिए क्या-क्या नहीं किया। निर्देशक सीमा पाहवा ने फिल्म में भारतीय रिश्तों को बखूबी दर्शाया है। फिल्म में दिखाया जाता है कि कैसे घर के सदस्यों को अपने पिता से शिकायत है कि उन्होंने कभी भी अपने बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं किया और ना ही कभी अपने मन की बात खुलकर किसी से बताई। इसी बीच पता चलता है कि राम प्रसाद ने एक बहुत बड़ा लोन लिया था जो अब उनके बच्चों को चुकाना है। इसी के साथ घर में बात शुरू हो जाती है कि आखिर क्या वजह है रही होगी कि राम प्रसाद ने इतनी बड़ी रकम का लोन लिया। यहाँ नोटिस करने वाली एक बात यह भी है कि ऐसे गम के माहौल में भी राम प्रसाद के बच्चों को अपनी माँ की चिंता से ज़्यादा इस बात की फ़िक्र है कि लोन कैसे चुकाया जाएगा।
इस फिल्म में एक भारतीय परिवार के सभी रंग देखने को मिलते हैं। परिवार की परंपराओं को निभाना, सदस्यों के बीच दिखावटी प्यार, आर्थिक स्थिति और थोपे हुए दायित्वों को पूरा करने का प्रेशर, ये सभी चीजें फिल्म में बखूबी दिखाई गई हैं। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कम्युनिकेशन गैप के चलते एक परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे से शिकायत रहती है, जो कि शायद अधिकतर भारतीय परिवारों की सच्चाई भी है। इस फिल्म की खासियत यह है कि निर्देशक सीमा पाहवा ने इस फिल्म में कोई भी विलेन नहीं है। सब अपनी-अपनी जगहों पर सही लगते हैं और सबका अपना-अपना सच है।
इस फिल्म की खासियत यह है कि फिल्म में ट्रैजेडी के साथ-साथ सिचुएशनल कॉमेडी का तड़का भी है। कुछ भी थोपा हुआ नहीं लगता है। बतौर निर्देश सीमा पाहवा ने अपनी पहली फिल्म में अच्छा डायरेक्शन किया है जिसकी तारीफ करनी होगी। उन्होंने फिल्म में भरतीय परिवारों के आपसी रिश्तों को दिखाने की अच्छी कोशिश की है। फिल्म की कास्ट की बात करें तो नसीरुद्दीन शाह, सुप्रिया पाठक, कोंकणा सेन शर्मा, परमब्रता चटर्जी, विनय पाठक, विक्रांत मेसी और मनोज पाहवा जैसे मंझे हुए कलाकार अहम किरदारों में हैं।
फिल्म का कांसेप्ट अच्छा है क्योंकि यह रियल लाइफ से प्रेरित है। फिल्म में दिखाया गया है कि किसी रिश्तेदार की मौत हो जाती है तो क्या माहौल होता है। कैसे लोग मातम के माहौल में भी गॉसिप करते हैं, ये सब फिल्म में कॉमेडी के जरिए बखूबी दिखाया गया है। इस फिल्म में थोड़ी खुशी, थोड़ा गम और ढेर सारे इमोशंस हैं। सागर देसाई ने अपने संगीत से फिल्म के मूड को जस्टिफाई किया है। हालांकि, फिल्म थोड़ी स्लो है लेकिन ओवरऑल फिल्म देखने लायक है।