Teenage Parenting: टीनएज में है आपका बच्चा तो दोस्त बन दें उसका साथ, पेरेंटिंग में नहीं आएगी समस्या
By Ek Baat Bata | Sep 02, 2023
हर दंपति के लिए माता-पिता बनना आसान नहीं होता है। यह एक ऐसी जिम्मेदारी होती है, जिसमें आपको सख्ती के साथ संतुलन बनाए रखना पड़ता है। वैसे तो हर माता पिता अपने बच्चे की अच्छे से परवरिश करता है। लेकिन अगर पेरेंट्स से पूछा जाए कि उन्हें अपने बच्चे के साथ सबसे ज्यादा समस्या किस समय हुई है, तो अधिकतर लोगों का जवाब होगा कि जब उनका बच्चा किशोरावस्था में था। क्योंकि इस दौरान ना तो बच्चे ज्यादा बड़े होते हैं और ना ही वह बच्चे होते हैं। इस दौरान बच्चे से सही और गलत की पहचान करवाना सबसे ज्यादा मुश्किल काम होता है।
क्योंकि इस उम्र में बच्चे के अंदर कई बदलाव होते हैं। इन बदलावों में शारीरिक और मानसिक बदलाव शामिल हैं। ऐसे में अगर बच्चे को सही गाइडेंस और पैरेंटिंग ना मिले। तो बच्चे की जिद विद्रोह में भी बदल सकती है। ऐसे में इन टिप्स की मदद से किशोरावस्था के दौरान माता-पिता अपने बच्चों को संभाले।
जरूरत से ज्यादा न हों प्री-पेयर
पैरेंट्स अक्सर यह गलती करते हैं कि वह खुद को उन चीजों के लिए तैयार करते हैं, जो अभी तक उनके सामने नहीं आई है। वह स्थिति को हमेशा अपने कंट्रोल में करने का प्रयास करते हैं। जिसकी वजह से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। कई बार दूसरों की कहानियां सुन पेरेंट्स अपने बच्चे के साथ भी वैसा ही बर्ताव करने लगते हैं। जिसके कारण उनकी परेशानी बढ़ सकती है। हर समय बच्चे के साथ सख्ती ना अपनाएं, क्योंकि ऐसा करने पर बच्चे पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। बच्चे के अंदर विद्रोह की भावना पैदा हो सकती है।
हर बात को नापसंद न करें
बता दें कि किशोरावस्था एक कठिन उम्र होती है, जिसमें बच्चा कई चीजों को लेकर कंफ्य़ूज रहते हैं। या फिर वह हद से ज्यादा कॉन्फिडेंट हो जाते हैं। ऐसे में पेरेंट्स को अपने बच्चे को चियरलीडर बनाना चाहिए। उनको इस दौरान नीचा दिखाने का प्रयास ना करें। बच्चे कई बार दोस्तों के इंफ्लूएंस में या फिर ट्रेंड के साथ चलने की चाह में कुछ अजीबो-गरीब चीजें भी कर सकते हैं। ऐसे मे आप धैर्य और समझदारी के साथ उनको सही और गलत के बीच का फर्क समझाएं।
हर बात पर न दिखाएं असहमति
अपने बच्चे को किशोर उम्र के पड़ाव पर कंट्रोल में लाने के प्रयास में पेरेंट्स हर चीज के लिए ना कह देते हैं। इसी जगह से बच्चे और पेरेंट्स के बीच तनाव बढ़ जाता है। इसलिए उनके हर काम को ना कहने से बच्चे पर गलत असर पड़ सकता है। इसलिए उन्हें थोड़ा सा फ्रीडम जरूर दें। इसके अलावा हर बात को खारिज ना करें। बल्कि उसको ध्यान से सुनने के बाद उसपर चर्चा करें और फिर बच्चे को उस टॉपिक पर अपनी बात समझाएं।