Parenting Tips: हर बच्चे को दादा-दादी के साथ बिताना चाहिए समय, जानिए पर्सनालिटी पर पड़ता है कैसा असर

By Ek Baat Bata | Jul 11, 2023

आजकल बिजी शेड्यूल और लाइफस्टाइल के कारण बच्चे अपने माता-पिता और दादा-दादी के साथ ज्यादा वक्त नहीं बिता पाते हैं। कई बार बच्चे गैजेट्स, खेलकूद और पढ़ाई आदि में इतने व्यस्त हो जाते हैं। लेकिन दादा-दादी के साथ बच्चों का समय बिताना काफी जरूरी होता है। क्योंकि बच्चे दादा-दादी के लाइफ एक्सपीरियंस से बहुत कुछ सीख पाते हैं। बच्चे उनसे कल्चर वैल्यू भी सीखते हैं। जो उनकी पर्सनालिटी को निखारने में मदद करती हैं। ये साऱी चीजें बच्चे को लाइफ में ग्रो करने में अहम भूमिका निभाती हैं। इसलिए बच्चों को अपने दादा-दादी के साथ समय जरूर बिताना चाहिए। क्योंकि बच्चों को उनसे काफी कुछ सीखने को मिलता है।

रीति-रिवाज
बच्चे दादा-दादी के साथ रहकर अपने परिवार के बारे में अच्छे से जान पाते हैं, उन्हें अपने रीति-रिवाजों और कल्चर के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। बच्चे जितना अधिक अपने दादा-दादी से सीखते हैं, उतना वह पेरेंट्स से भी नहीं सीख पाते हैं। दादा-दादी के साथ रहकर बच्चे त्योहारों के महत्व और उन्हें मनाने के तरीके के बारे में सीखते हैं।

संस्कार
हर दादा-दादी बच्चों को कई अच्छे संस्कार देते हैं। जैसे- नमस्ते करना, बड़ों के पैर छूना, रोजाना भगवान की पूजा करना आदि। यह सारी बातें बच्चे दादा-दादी से सीखते हैं। दादा-दादी से ही बच्चे अपनी परंपराओं की नींव को समझते हैं।

कहानियां
शायद ही कोई बच्चा होगा, जिसने अपने दादा-दादी से कहानियां नहीं सुनी होंगी। दादा-दादी बच्चों को जो कहानियां सुनाते हैं, वह बच्चे के व्यक्तित्व पर भी प्रभाव डालने का काम करती हैं। इससे बच्चों में नैतिक समझ बढ़ती है।

बातें शेयर करना
कई ऐसी बातें होती हैं, जो बच्चे अपने माता-पिता से नहीं कर पाते हैं। लेकिन दादा-दादी के ज्यादा क्लोज होने के कारण वह अपने मन की बात उन्हें कहने से नहीं हिचकिचाते हैं। वह आसानी से अपनी बातें शेयर कर लेते हैं। इससे बच्चे तनाव में भी नहीं रहते हैं और मुश्किल स्थिति से निकलने में भी मदद मिलती है।

नहीं सताता अकेलापन
जब बच्चा अपने दादा-दादी के साथ समय बिताते हैं, उनके साथ खेलते हैं, बातें शेयर करते हैं, तो उन्हें कभी अकेलापन नहीं सताता है। ऐसे में बच्चे गुमसुम होने की बजाय इमोशनली स्ट्रांग होते हैं। उनके व्यवहार में पॉजिटिव बदलाव आते हैं। ऐसे में जो पेरेंट्स बच्चे को साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते हैं, वह अपने दादा-दादी के साथ उस समय को पूरा कर लेते हैं।