डिलीवरी में बचे हैं बस दो महीने तो जरूर करवा लें ये टेस्ट

By Ek Baat Bata | Dec 16, 2020

प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीने बाकी महीनों से अलग और अधिक नाजुक होते हैं। इन दो महीनों में आने वाले बच्चे की ख़ुशी भी होती है और डिलीवरी को लेकर कई सवाल और चिंताएँ भी। इन आखिरी दो महीनों में आपको अपनी सेहत का खास ख्याल रखना होता है ताकि डिलीवरी के समय कोई समस्या ना हो। प्रेगनेंसी की शुरुआत से लेकर डिलीवरी के समय तक प्रेगनेंट महिला को कुछ ब्लड टेस्ट व अन्य जाँच करवानी होती है जिससे माँ और होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य के बारे में पता चल पाता है। आज के इस लेख में हम आपको प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में किए जाने वाले टेस्ट के बारे में बताएंगे -

डॉप्लर टेस्ट
प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में डॉक्टर्स अल्ट्रासाउंड करवाने की सलाह देते हैं। जहाँ प्रेगनेंसी के शुरूआती महीनों में शिशु के जेनेटिक और अंग विकारों के बारे में पता लगाने के लिए अल्ट्रासाउंड किया जाता है। वहीं, प्रेगनेंसी के आठवें या नौवें महीने में डॉक्टर्स डॉप्लर टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। डॉप्लर टेस्ट भी नॉर्मल अल्ट्रासाउंड की तरह ही किया जाता है। डॉप्लर टेस्ट से प्‍लेसेंटा की जांच की जाती है और इससे पता चलता है कि शिशु को पर्याप्‍त ऑक्‍सीजन और पोषण मिल पा रहा है या नहीं। इसके अलावा अगर गर्भ में जुड़वां बच्‍चे हों, शिशु रीसस एंटीबॉडीज से प्रभावित हो, शिशु का विकास ठीक तरह से ना हो रहा हो, पहली प्रेगनेंसी में शिशु का आकार छोटा रहा हो, पहले देरी से मिसकैरेज हुआ हो या डिलीवरी के वक्‍त बच्‍चा मर गया हो, गर्भवती महिला डायबिटीज या हाई ब्‍लड प्रेशर से ग्रस्‍त प्रेगनेंट हो या जिनका बीएमआई कम या ज्‍यादा हो, तो इन स्थितियों में भी डॉक्टर डॉप्‍लर टेस्‍ट करवाने को कहते हैं। डॉप्‍लर स्‍कैन से डॉक्‍टर को यह निश्चित कर पाते हैं कि क्‍या शिशु के स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए कोई कदम उठाने या जल्‍दी डिलीवरी करवाने की जरूरत तो नहीं है।

ग्रुप बी स्ट्रेप स्क्रीनिंग
प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में डॉक्टर ग्रुप बी स्ट्रेप्टोकोकस (जीबीएस) संक्रमण की जांच करते हैं। जीबीएस बैक्टीरिया महिलाओं के मुंह, गले व योनि में पाया जाता है। हालांकि, यह हानिकारक नहीं होता, लेकिन प्रेगनेंसी में यह मां और शिशु दोनों के लिए संक्रमण का कारण बन सकता है। अगर गर्भवती महिला इस बैक्टीरिया से संक्रमित हो तो डिलीवरी के समय शिशु को संक्रमण होने का खतरा रहता है। अगर जीबीएस टेस्ट पॉजिटिव आता है तो डॉक्टर एंटीबायटिक दवा देते हैं ताकि डिलीवरी के समय शिशु को संक्रमित होने से बचाया जा सके।

नॉनस्ट्रेस टेस्ट
डॉक्टर्स प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में नॉनस्ट्रेस टेस्ट के जरिए भ्रूण की हृदय गति और स्वास्थ्य की जांच करते हैं। यदि गर्भ में शिशु की हलचल सामान्य हो या फिर प्रेगनेंट महिला की डिलीवरी डेट निकल गई हो और प्रसव पीड़ा ना शुरू हुई हो, तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर नॉनस्ट्रेस टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं। अगर डॉक्टर को लगता है कि प्रेगनेंट महिला अधिक जोखिम में है, तो यह टेस्ट हर हफ्ते किया जा सकता है।

कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रैस टेस्ट
कॉन्ट्रैक्शन स्ट्रैस टेस्ट प्रेगनेंसी के आखिरी हफ्तों में किया जाता है। इस टेस्ट के जरिए डॉक्टर्स यह निर्धारित करते पाते हैं कि कि बच्चा जन्म के समय होने वाले कॉन्ट्रैक्शन का कितनी अच्छी तरह से सामना करेगा। आमतौर पर प्रसव के समय होने वाले कॉन्ट्रैक्शन के दौरान भ्रूण की ब्लड और ऑक्सिजन की सप्लाई रुक जाती है। हालाँकि, ज्यादातर मामलों में इससे समस्या नहीं होती है, लेकिन कुछ शिशुओं का हार्ट रेट कम हो जाता है। कॉन्ट्रेक्शन स्ट्रेस टेस्ट के लिए प्रेगनेंट महिला को ऑक्सिटोन हार्मोन दिया जाता है, जिससे लेबर कॉन्ट्रैक्शन हो सके। इसके साथ ही कार्डियोटोकोग्राफ का इस्तेमाल करके शिशु की हृदय गति चेक की जाती है।

प्रेगनेंसी के आखिरी दो महीनों में डॉक्टर्स इन सभी ब्लड टेस्ट्स के अलावा रूटीन जांच भी करवाते हैं। प्रेगनेंसी की शरुआत से लेकर आखिरी दिनों तक, हीमोग्लोबिन, डायबिटीज़, थायरॉइड, लिवर जाँच आदि करवाई जाती हैं।