हर गर्भवती महिला चाहती है कि उसका होने वाला बच्चा स्वस्थ पैदा हो। पहले के समय में गर्भ में पल रहे बच्चे में होने वाले जेनेटिक विकारों का पता लगाना मुमकिन नहीं था। हालांकि, अब हाईटेक तकनीकों के जरिए गर्भ में पल रहे बच्चे की स्थिति का पता लगाना संभव है। प्रेगनेंसी में एक गर्भवती महिला को डॉक्टर्स कई तरह की जांच करवाने की सलाह देते हैं। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण जांच है नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग। यह टेस्ट अजन्मे शिशु में जेनेटिक दोष और असमानताओं की सटीक जांच करने के लिए किया जाता है। आइए जानते हैं नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग कैसे की जाती है और इसके क्या फायदे हैं -
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग के जरिए गर्भ में पल रहे शिशु में जेनेटिक दोष और असमानताओं की जांच की जाती है। यह एक सुरक्षित तरीका है और इसके जरिए गर्भ में पल रहे शिशु में 99 फ़ीसदी तक जेनेटिक बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इसके लिए प्लेसेंटा के डीएनए की जांच की जाती जिससे पता लगाया जाता है कि कहीं इसमें किसी तरह की कोई असमानता या फिर शिशु को किसी तरह का कोई रिस्क नहीं है।
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग कब करवानी चाहिए?
प्रेगनेंसी के शुरुआती हफ्तों में डॉक्टर्स आपको यह टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं। इसके लिए गर्भवती महिला की बांह से खून का सैंपल लेकर क्रोमोसोम संबंधी दिक्कतों की जांच की जाती है। इस तरह से गर्भ में पल रहे बच्चे में जेनेटिक दोष और असमानताओं के बारे में पता लगाया जा सकता है।
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग क्यों जरुरी है?
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग के जरिए निम्नलिखित क्रोमोसोमल असमान्यताओं के बारे में सटीक तरीके से पता लगाया जा सकता है -
- डाउन सिंड्रोम
- टर्नर सिंड्रोम
- एडवर्ड सिंड्रोम
- पटाऊ सिंड्रोम
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग की जरूरत किसे होती है?
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग की जरूरत ऐसी गर्भवती महिलाओं को सबसे ज्यादा होती है जिनके कंसीव करने पर शिशु को डाउन सिंड्रोम होने का खतरा ज्यादा रहता है। जैसे -
- जब गर्भवती महिला की उम्र 35 साल के ऊपर हो
- जब गर्भवती महिला को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर या कोई अन्य बीमारी हो
- यदि महिला ने पहले भी डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को जन्म दिया हो
- यदि महिला को पूर्व में कभी गर्भपात हुआ हो या प्रीमेच्योर डिलीवरी हुई हो
- यदि परिवार में पहले से किसी प्रकार का जेनेटिक दोष मौजूद हो
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग के नतीजों से क्या पता चलता है?
नॉन इनवेसिव प्रीनेटल टेस्टिंग के नतीजे दो से तीन हफ्तों के अंदर आ जाते हैं। अगर रिजल्ट नेगेटिव आता है तो इसका मतलब यह है कि शिशु को ऊपर बताई गई जेनेटिक असमानताओं में से कोई भी होने की आशंका काफी कम है। वहीं अगर रिजल्ट पॉजिटिव आता है तो इसका मतलब यह है कि शिशु को ऊपर बताए गए किसी भी सिंड्रोम का खतरा हो सकता है। अगर रिजल्ट पॉजिटिव आया हो तो माता-पिता को डॉक्टर की सलाह से आगे अन्य जांच करवानी चाहिए ताकि समय रहते सही कदम उठाया जा सके।