शादी के लिए धर्म परिवर्तन को लेकर इलाहबाद हाई कोर्ट ने सुनाया यह बड़ा फैसला
By Ek Baat Bata | Nov 03, 2020
कहते हैं कि प्यार में धर्म या जाति मायने नहीं रखता है लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि दो प्यार करने वालों को शादी करने के लिए अपना धर्म बदलना पड़ता है? देश में शादी के लिए धर्म परिवर्तन के कई मामले सामने आ चुके हैं। शादी के लिए धर्म परिवर्तन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस मामले में कोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि अदालत इस मामले में कोई दख़ल नहीं दे सकता।
क्या था कोर्ट का फैसला?
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा कि। "प्रियांशी उर्फ समरीन जन्म से मुस्लिम है और शादी के लिए सबरीन ने हिंदू धर्म अपनाया था और बाद में अपना नाम प्रियांशी रखा था। उसने 29 जून 2020 को धर्म परिवर्तन कर हिंदू धर्म स्वीकार किया था। इसके बाद 31 जुलाई को उन्होंने हिंदू रीति से शादी कर ली। " कोर्ट के मुताबिक, "रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि धर्म परिवर्तन केवल शादी करने के उद्देश्य से किया गया है। किसी धर्म को बिना जाने और आस्था रखे केवल शादी के लिए किए जाने वाले धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया जा सकता। "
जस्टिस एम सी त्रिपाठी ने ये अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि, "अदालत भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज कराने की छूट दी है।
कोर्ट ने दिया नूर जहां केस का हवाला
इसके लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2014 में नूर जहां बेगम केस के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। नूर जहां केस में हिंदू लड़की ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी की थी। सवाल था कि क्या हिंदू लड़की धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी कर सकती है और यह शादी वैध होगी? तब भी कोर्ट ने शादी के लिए धर्म बदलने को वैध नहीं बताया था। कोर्ट ने नूरजहां मामले में कहा था कि, "यह विवाह पवित्र कुरान के शूरा दो आयत 221 के निर्देशों के विपरीत है।"