By Ek Baat Bata | Feb 19, 2020
हिन्दू कैलेंडर के हर महीने में एक शिवरात्रि आती है लेकिन फाल्गुन महीने की शिवरात्रि का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में महाशिवरात्रि को सबसे बड़े पर्वो में से एक माना जाता है और इसे देशभर में एक महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान शिव को समर्पित है। कथाओं की माने तो माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी, इसके फलस्वरूप फाल्गुन महीने में कृष्ण चतुर्दशी को माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह हुआ था। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना की जाती है। माना जाता है कि भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा की जाए तो, वो हमारी ज़िन्दगी की सभी समस्याओ को खत्म कर देते हैं।
महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्त 2020
इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 21 फरवरी शुक्रवार के दिन मनाया जाएगा। 21 फरवरी को शाम 05 बज कर 20 मिनट पर चतुर्दशी तिथि शुरू होगी और 22 फरवरी शाम 07 बज कर 02 मिनट पर चतुर्दशी तिथि समाप्त होगी। 22 फरवरी सुबह 06 बज कर 54 मिनट से शाम 03 बज कर 25 मिनट तक महाशिवरात्रि पारण का समय होगा। निशीथ काल पूजा का समय 22 फरवरी सुबह 12 बज कर 09 मिनट से 01 बजे तक होगा।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि एक पवित्र त्योहार है, शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले लोगों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि का व्रत रखने वाले लोगों के सभी दुखों, तकलीफो का अंत तो होता ही है इसके साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती हैं। इस दिन को भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का दिन माना जाता है, कहते हैं कि इस दिन जो विवाहित जोड़े और अविवाहित लड़किया शिव की भक्ति करते हैं उन्हें मनचाहा वर और सुखी विवाहित जीवन मिलता है।
महाशिवरात्रि व्रत पूजा विधि
महाशिवरात्रि की पूजा को पानी, दूध, गंगा जल, बेल के पत्तों, बेर जैसे फल और अगरबत्ती के साथ किया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने के बाद नए कपड़े पहन कर शिव मंदिर जाते हैं। शिव मंदिर में शिवलिंग के चारों ओर 3 या 7 फेरे लेने के बाद, कच्चे दूध में गंगा जल मिलाकर शिवलिंग पर डालते हैं और अगरबत्ती ,पत्ते, फल, फूल के साथ विधि विधान से पूजा करते हैं। भगवान शिव की पूजा के समय ॐ नमः शिवाय का जाप करना शुभ होता है। आखिर में भगवान शिव की आरती कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
महाशिवरात्रि पर शिव जी की पूजा में शामिल ना करें ये चीज़ें
भगवान शिव जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं उतनी जल्दी रुष्ट भी हो जाते हैं इसलिए भोलेनाथ की पूजा में शंख, कुमकुम या सिन्दूर, हल्दी, नारियल का पानी, तुलसी, टूटे हुए चावल, केतकी और केवड़े फूलों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
शंख- भगवान शिव की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं होता, शंख को भगवान विष्णु के भक्त शंखचुड नाम के असुर का प्रतिक माना जाता है जिसका वध भगवान शिव ने किया था।
कुमकुम या सिन्दूर- महिलाएँ अपने पति की लम्बी उम्र के लिए सिन्दूर लगाती हैं, लेकिन भगवान शिव को अंत का प्रतिक माना जाता है इसलिए उनकी पूजा में सिन्दूर या कुमकुम का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
तुलसी- कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर राज जलंधर का वध किया था इसलिए तुलसी का पत्ता भी भगवान शिव की पूजा में इस्तेमाल नहीं होता।
हल्दी- हल्दी का संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए यह भगवान शिव की पूजा में हल्दी इस्तेमाल नहीं होती।
नारियल पानी- नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है इसलिए सभी शुभ कार्य में नारियल को प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है, लेकिन भगवान शिव पर अर्पित होने के बाद नारियल पानी ग्रहण करने योग्य नहीं रहता इसलिए शिव की पूजा में नारियल पानी का इस्तेमाल नहीं होता।
टूटे हुए चावल- टूटें हुए चावल अपूर्ण और अशुद्ध माने जाते है इसलिए इनका इस्तेमाल शिव जी की पूजा में नहीं होता।
केतकी और केवड़े के फूल- केतकी और केवड़े के फूलों का इस्तेमाल भगवान शिव की पूजा में नहीं होता।