जानिए हरतालिका तिथि, व्रत कथा और पूजा करने की पूरी विधि

By Ek Baat Bata | Aug 19, 2020

अगस्त के महीने में अलग-अलग त्यौहार मनाए जाते हैं जैसे कि रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और हरियाली तीज, इन सभी त्योहारों का अपने आप में बहुत ही बड़ा महत्व होता है। भारत एक ऐसा देश है जहां पर प्रतिदिन कोई न कोई त्यौहार जरूर होता है। हरियाली तीज हर कोई बहुत ही खुशी और उल्लास से मनाता है। आज हम आपको बताएंगे कि हरतालिका इस साल कब पड़ने वाली है। कौन सी तरीक को आप इसे मना सकते हैं। साथ ही इस त्यौहार को मनाने की क्या सही विधि है।भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को पड़ने वाली हरतालिका तीज इस बार 21 अगस्त को मनाई जाएगी।

इस त्यौहार पर सभी महिलाएं और कुंवारी कन्याएं व्रत रखती है। हरतालिका के व्रत के उत्सव को लगभग पूरे देश मे मनाया जाता है। लेकिन उत्तर भारत में इसको ज्यादा हर्ष- उल्लास के साथ मनाया जाता है क्योंकि उत्तर भारत मे इसका विशेष महत्व है। इस व्रत में शिव और माता पार्वती की पूजा होती है। जो भी महिलाएं या कन्याएं इस दिन व्रत रखती है वह शिव-पार्वती की विधि-विधान से पूजा करती है। इस दिन रेत से बनी शिव-पार्वती की प्रतिमा का विधिवत ढंग से पूजा की जाती है। व्रत रखने के साथ-साथ सभी महिलाएं और कुंवारी कन्याएं हरतालिका व्रत कथा को सुनती हैं। इस व्रत को कुंवारी कन्याएं और सुहागिन महिलाएं दोनों ही रख सकती हैं। इस व्रत को रखने से सुहागिन महिलाएं अखंड साैभाग्य के आशीर्वाद की अपेक्षा करती हैं तो वही कन्याएं मनचाहे वर के लिए व्रत करती है। मान्यता है कि एक बार व्रत रखने के बाद इस व्रत को आजीवन रखा जाता है। गंभीर रूप से बीमार होेने पर कोई दूसरी महिला या फिर उसका पति इस व्रत को रख सकता है।

व्रत विधि

हरतालिका के व्रत को करना और उसे निभाना आसान नही होता। इसे करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति होनी चाहिए। साथ ही इसके नियमों का पालन जरूर करना चाहिए। हरतालिका तीज के व्रत को विधिविधान से करना अति आवश्यक है।इस व्रत में महिलाओं को निराहार व निर्जल रहना पड़ता है।इस व्रत को रखने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।इस व्रत को करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है। इस व्रत के दौरान महिलाएं सो नही सकती साथ ही किसी भी तरह से गुस्सा नहीं कर सकती। यदि वह इस तरह की कोई गतिविधि करती हैं तो उनका व्रत पूरा नही होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार जो महिलाएं इस व्रत में सोती हैं वो अगले जन्म में अजगर के रूप लेती हैं। वहीं जो महिलाएं गुस्सा करती हैं उनका व्रत फलविहीन हो जाता है। वहीं यदि कोई महिला व्रत के दौरान फल या खाना खाती हैं तो वह अगले जन्‍म में वानर बन जाती है और जल पीने वाली अगले जन्‍म में मछली बन जाती है। वहीं दूध पीने वाली स्त्रियां अगले जन्‍म में सर्प योनि में जन्‍म लेती है।

पूजन विधि 

हरतालिका तीज का पर्व बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस दिन सभी महिलाएं सुबह जल्दी उठ के स्नान करती हैं और व्रत रखने की विधि को पूरी श्रद्धा के साथ निभाती हैं। इस त्यौहार के दिन मिट्टी या रेत से शिव-पार्वती की प्रतिमाएं बनाई जाती हैं। प्रतिमा बनाने के बाद शिव और पार्वती को लकड़ी की चाैकी पर लाल कपड़ा बिछाकर आसन पर भगवान को  बिठाया जाता है। साथ ही चाैकी को फूलों व केले के पत्तों से सजाया जाता है। पूजा करने से पहले चाैकी के सामने एक कलश भी रखे। कलश रखने के बाद शिव-पार्वती पर जल छिड़ककर उन पर फूल व फल चढ़ाए और फिर धूप, दीप, मेवा, पंचामृत, पान, मिठाई आदि अर्पण करें। इस व्रत के दौरान माता पार्वती को मेंहदी, चूड़ी, सिंदूर, महवर, बिंदी समेत सुहाग के सारे समान से सजाएं या उनके ऊपर यह सभी सामान चढ़ाए। सारी विधि करने के बाद आप हरतालिक तीज की कथा जरूर पढ़ें या जरूर सुने कथा के बिना आपका व्रत और पूजा अधूरी मानी जाएगी।कथा सुनने के बाद हवन करे और फिर शिव पार्वती की आरती उतारें। सारी पूजा विधि विधान से करने से बाद दूसरे दिन सुबह शिव-पार्वती की प्रतिमाओं का नदी में विसर्जन करें।

कथा

इस व्रत की कथा भी अनोखी है, शास्‍त्रों के मुताबिक राजा हिमवान की पुत्री पार्वती जी ने बालकाल में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा तट पर अन्‍न त्‍याग घोर तप शुरू कर  दिया था। जब वह इस तरह से सब कुछ त्याग कर भगवान की आराधना में लग गयी तो उनके माता पिता काफी परेशान होने लगे थे। पार्वती का भगवान शिव के प्रति प्रेम देख कर एक दिन नारद जी राजा हिमवान के पास पार्वती के लिए भगवान विष्णु की ओर से विवाह प्रस्‍ताव लेकर पहुंचे। लेकिन पार्वती तो थी शिव की दीवानी इसलिए उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार नही किया और पार्वती ने अपनी सहेली से कहा कि वह सिर्फ भगवान शंकर को ही पति के रूप में स्‍वीकार करेंगी। पार्वती को सुनकर उनकी सहेली ने सलाह दी कि वह गुफा में भगवान शिव की आराधना करें। अपनी सखी की बात मानते हुए पार्वती ने एक घने वन की गुफा में निवास कर लिया और भगवान की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र में पार्वती जी ने रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा की और रातभर जागरण किया। ऐसे में उनके तप और आराधना से खुश होकर भगवान शिव ने माता पार्वती जी को पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया था और शिव पार्वती सदैव एक दूसरे के हो गए।