वास्तु का प्रयोजन भवन में निर्मित वातावरण के जरिए मानवीय क्षमता की बेहतरीन संभावनाओं को जाग्रत करना है। वास्तु भवन के प्रयोजन को समझने के साथ ही भवन की योजना और डिजाइन को जानना भी है ताकि उस प्रयोजन को प्राप्त किया जा सकें। वास्तु का अर्थ है निवास के लिए सही भवन और शास्त्र का अर्थ है अध्ययन। वास्तु का अर्थ वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन की डिजाइनिंग या से सही करना है। इसे समझने के लिए हम उदाहरण लेते हैं। आपने रोजना के जीवन में ध्यान दिया होगा कि आप किसी दुकान पर जाते हैं और कुछ चीजें खरीद लेते हैं। जब आप घर आते हैं तो आपको महसूस होता है कि आपने यह खरीदारी बेवजह की है। इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। आपको नए कपड़े खरीदने का मन है। आपको उनकी जरूरत है। खरीदारी के सही बजट, डिजाइन और ब्रांड को लेकर आपका नजरिया साफ है। आप खरीदारी के लिए जाते हैं आपको वही चीज कम कीमत में मिल रही है। लेकिन आप अपने मन को बदल लेते हैं और वह नहीं खरीदते। घर वापस आने के बाद आपको अहसास होता है कि आपको वह खरीद लेना चाहिए था।
यहां आप देख सकते हैं कि किस तरह भवन ने आपको प्रभावित किया। पहली दुकान का वास्तु सही था क्योंकि वह आवेजपूर्ण खरीदारी को उत्पन्न कर रहा था। वहीं, दूसरी दुकान का वास्तु खराब था क्योंकि वह आपके निर्णय को कमजोर कर रहा था। इसी तरह आपकी हर भावना और व्यवहार का नियंत्रण भवनों द्वारा होता है। उदाहरण के लिए, यदि बेवजह आप चिंता और बेचैनी को महसूस कर रहे हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप पूर्ण दक्षिण पूर्व में सो रहे हैं।
जीवन एक निरंतर उत्सव है। यदि आप जीवन के उत्सव का आनंद नहीं ले पाते हैं तो इसका अर्थ यह है कि आप जिस वातावरण में रहते या काम करते हैं वह आपके मन या जीवन में कोई न कोई बाधा या रूकावट की वजह बन रहा है। हर भवन का निर्माण विशेष प्रयोजन के साथ किया जाता है और वास्तु शास्त्र इस प्रयोजन को प्राप्त करने में मददगार है। यह उस भवन में रहने वाले लोगों के जीवन और मन से बाधाओं को दूर करने में मदद करता है। उदाहरण के लिए आपने गौर किया होगा कि किसी विशेष रेस्टोरेंट का भोजन स्वाद में बहुत अच्छा होता है या कोई विशेष दर्जी अच्छे कपड़े सिलता है। किसी विशेष रेस्टोरेंट या दर्जी की सफलता का रहस्य उसके कार्यस्थल में वस्तुओं एवं उपकरणों का सही दिशा में होने में निहित है इसी तरह जब हम भवन के अंदर प्रवेश करते हैं तो देखते हैं कि कहां पर पंचतत्वों की स्थिति है, अर्थात् आग कहां पर है, पानी कहां पर है, कहां पर हवा का आवागमन है कहां पर खाली आकाश है और कहां पर स्टोर है।
इसके अलावा कहां पर कौन-सा रंग है जो पंचतत्व से आता है। जैसे कि आग कहां पर है वहां पर अग्नि तत्व हो गया, लाल रंग जहां कहीं है वहां भी अग्नि तत्व हो गया, नीला रंग जहां है वहीं जल तत्व हो गया। इस आधार पर हम देखते हैं कि कौन-सा तत्व है या होना चाहिए, या नहीं होना चाहिए। अगर ये संतुलन में नहीं है तो सबसे पहले पंचतत्वों के संतुलन को बनाया जाए।