हमारे देश में कई ऐसी महिलाएं हैं, जो देश की सीमा की सुरक्षा के लिए भारतीय रक्षा मंत्रालय में अधिकारी हैं। कुछ महिलाएं भारतीय वायुसेना, जलसेना और थल सेना में कार्य करती हैं। इन महिला अधिकारियों को देश की सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। समय आने पर देश के लिए खुद का जीवन कुर्बान करने से भी पीछे नहीं हटती हैं। ठीक इसी तरह से देश के अंदरूनी विवादों और समस्याओं से भारतवासियों की रक्षा के लिए महिला डॉक्टर, महिला पुलिस अधिकारी और नर्स आदि होती हैं।
लेकिन आज हम आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जो ना तो भारतीय रक्षा मंत्रालय में शामिल थीं और ना ही उनको किसी तरह का कोई प्रशिक्षण दिया गया था। लेकिन जब मौका आया तो देशवाशियों की जान की रक्षा के लिए वह खुद आतंकवादियों के सामने बिना डरे डटकर खड़ी हो गईं। अपनी जान दांव पर लगाकर उस महिला ने 360 लोगों की जान को सुरक्षित किया। बता दें कि हम यहां पर नीरजा भनोट की बात कर रहे हैं। आज यानी की 7 सितंबर के दिन नीरजा भनोट का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर नीरजा भनोट के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
नीरजा का जन्म पंजाबी परिवार में 7 सितंबर 1963 को हुआ हुआ था। नीरजा का बचपन चंडीगढ़ में बीता। उन्होंने चंडीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकंडरी स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा ली। इसके बाद वह परिवार सहित मुंबई शिफ्ट हो गईं। उन्होंने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ग्रेजुएशऩ की डिग्री हासिल की। नीरजा भनोट इतिहास के पन्नों में दर्ज वह नाम है, जिनकी बहादुरी और साहस का किस्सा पूरी दुनिया में फेमस है।
कॅरियर
नीरजा कम उम्र से ही खुले विचारों और स्वतंत्र स्वभाव वाली थीं। नीरजा को मॉडलिंग का शौक था। हालांकि साल 1985 में उनकी शादी हुई थी, लेकिन शादी में दरार आने के बाद उन्होंने मुंबई में मॉडलिंग में अपने कॅरियर की शुरूआत की थी। शादी टूटने के कुछ समय बाद नीरजा अमेरिका चली गईं और वहां पर PAN AM कंपनी में नीरजा एयरहोस्टेज बन गईं।
जब नीरजा ने बचाई लोगों की जान
साल 1986 में कराची में एक विमान उड़ान भरने के लिए रेडी था। इसी बीच 4 आतंकवादियों ने प्लेन को हाईजैक कर लिया। आतंकवादियों को देखते ही प्लेन के पायलट और को-पायलट मौके से फरार हो गए। वहीं नीरजा के पास भी मौका था कि वह भाग सकें। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। आतंकवादी अमेरिकी नागरिकों और पायलट को ढूंढ रहे थे। जब आतंकियों ने नीरजा से लोगों के पासपोर्स लाने के लिए कहा तो नीरजा ने अमेरिकी लोगों के पासपोर्ट छिपा दिए और बाकी लोगों के पासपोर्ट उनके हवाले कर दिया।
प्लेन में अमेरिका का एक भी नागरिक ना देख आतंकवादी बौखला गए। बता दें कि यह आतंकी अबु निदान ऑर्गनाइजेशन के थे। अथॉरिटी से बात करते हुए आतंकियों ने प्लेन में 17 घंटे बिताए। तब तक प्लेन में बैठे यात्रियों की सांस हलक में अटकी रही। प्लेन में कुछ बच्चों की तबियत बिगड़ने लगी। ऐसे में जब मौका मिला तो नीरजा उन बच्चों को लेकर इमरजेंसी डोर की तरफ भागी। ऐसे में आतंकियों ने बच्चों की तरफ बंदूक तान दीं, लेकिन नीरजा ने बीच में आकर गोली अपने ऊपर ले ली। उन्होंने घायल अवस्था में ही प्लेन का इमरजेंसी डोर खोल दिया।
ऐसे बचाई यात्रियों की जान
घायल अवस्था में भी नीरजा य़ात्रियों को इमरजेंसी गेट से बाहर निकालती रहीं। तभी आतंकियों ने गोलीबारी शुरूकर दी। जिसमें 100 से अधिक लोग घायल हुए और 18-19 लोगों की जान चली गई। 5 सितंबर को गोली लगने के कारण नीरजा की भी मौत हो गई। लेकिन नीरजा के इस साहसिक कदम से 360 लोगों की जान बचाई जा सकी। वहीं इस आपाधापी में आतंकी भी मौके से फरार हो गए। बता दें कि यह आतंकी एबीआई की हिटलिस्ट में हैं, इसके अलावा इन आतंकियों पर 50 लाख अमिरेकी डॉलर का इनाम भी रखा गया। लेकिन इन आतंकवादियों को कभी पकड़ा नहीं जा सका।
नीरजा ने अपनी जान की परवाह किए बिना 360 लोगों की जान बचाई। इस तरह से नीरजा की शहादत हो गई। बता दें कि वह भारत की पहली ऐसी महिला थीं, जिसे अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा उनको 'तमगा-ए-इंसानियत' का भी खिताब दिया गया था। वहीं अमेरिकी सरकार ने भी नीरजा को सम्मानित किया था। नीरजा की बहादुरी से प्रभावित होकर अमेरिका की मीडिया ने नीरजा को 'हीरोइन ऑफ हाईजैक' का खिताब दिया था। बता दें कि उनके बर्थडे के दो दिन पहले यानी की 5 सितंबर को प्लेन हाइजैक हुआ और इसी दिन गोली लगने से नीरजा की मौत हो गई।