आज ही के दिन यानी की 31 मई को महारानी अहिल्याबाई का जन्म हुआ था। वह प्रसिद्ध सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव की पत्नी थीं। हालांकि वह किसी बड़े राज्य की महारानी नहीं थी, उनका कार्यक्षेत्र भी सीमित था। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने जो कार्य किए वह सराहनीय थे। कई लोगों उन्होंने कई आक्रमणों से मालवा की रक्षा की। साथ ही अहिल्याबाई को उनके सामाजिक कार्यों के बारे में भी जाना जाता है। उन्हें 'मातोश्री' भी कहा जाता है। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर अहिल्याबाई होलकर के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी ग्राम में 31 मई 1725 को अहिल्याबाई होलकर का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम मंकोजी राव शिंदे था, जोकि अपने गांव के पाटिल थे। उस दौरान जब महिलाओं की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था और महिलाएं स्कूल नहीं जाती थीं, तब अहिल्याबाई के पिता ने उनको पढ़ने-लिखने योग्य बनाया।
खुद संभाली साम्राज्य की कमान
बता दें कि 1754 के कुम्भेर युद्ध में अहिल्याबाई के पति खांडेराव होलकर शहीद हो गए। वहीं पति की मृत्यु के 12 साल बाद ससुर मल्हार राव होलकर की मृत्यु हो गई। पहले पति और फिर ससुर की मृत्यु के एक साल बाद अहिल्याबाई को मालवा साम्राज्य की महारानी बनाया गया। उन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारियों से हमेशा अपने साम्राज्य को बचाने का प्रयास किया। अहिल्याबाई खुद युद्ध में शामिल होकर सेना का नेतृत्व करती थीं।
धार्मिक स्थलों का निर्माण
अहिल्याबाई होलकर ने तमाम धार्मिक स्थलों का निर्माण कराया। उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाने के साथ ही बहुत से लोगों के रहने के लिए धर्मशालाओं का निर्माण कराया। यह सभी धर्मशालाएं तीर्थस्थानों जैसे- काशी विश्वनाथ, गुजरात, विष्णु पद मंदिर, बैजनाथ, उज्जैन, नासिक और वाराणसी के गंगा घाट के आसपास बनवाई। बता दें कि उस समय मुस्लिम आक्रमणकारी मंदिरों को ध्वस्त कर देते थे, इसी को देखते हुए अहिल्याबाई ने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया।
महेश्वर बनाई राजधानी
रानी अहिल्याबाई ने सत्ता संभालने के बाद महेश्वर को अपनी राजधानी बनाई। उन्होंने महेश्वर में 18वीं सदी का बेहतरीन और आलीशान अहिल्या महल बनवाया। यह महल नर्मदा नदी के किनारे पर बना है। इस महल के इर्द-गिर्द बनी राजधानी की टेक्सटाइल इंडस्ट्री पहचान बनीं। उस दौरान यह जगह मूर्तिकला, संगीत, साहित्य और कला के क्षेत्र में एक गढ़ बन चुका था।
मृत्यु
रानी होलकर का मानना था कि धन प्रजा और ईश्वर की धरोहर है। इसलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में घाट बंधवाए, कुंओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र खोले, प्यासों के लिए प्याऊ आदि बनवाए। वहीं 13 अगस्त 1795 को 70 साल की उम्र में अहिल्याबाई होलकर का निधन हो गया था।